मैं तो हूँ हैरान, जीने की कशमकश में
हाथ से फिसल गयी हैं वो तस्वीर
बनायीं थी जो खुद के लिए
बहुत दूर हूँ निकल कर आया, कांटे हैं आगोश में
हाथ से फिसल गयी हैं वो तस्वीर
बनायीं थी जो खुद के लिए
गिरती हुई ओस को थामा था हाथो से
बारिश की बुँदे भी नही छूटी थी कभी
अब तो वो सब्र भी नही रहा, आँखों के छोटे से अश्क में
हाथ से फिसल गयी हैं वो तस्वीर
बनायीं थी जो खुद के लिए
जला दिए थे जो पुर्जे, शमा-ऐ-दोजख में
मिला दिया हैं उनसे, फिर हमें वक़्त ने
मैं तो हूँ हैरान, जीने की कशमकश में
हाथ से फिसल गयी हैं वो तस्वीर
बनायीं थी जो खुद के लिए
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